गीता, बाइबल और कुरान

gita bible aur quran Govardhan Math puri Shankaracharya swami nishchalanand saraswati ji pravachan

Gita Bible and kuran. Govardhan Math puri Shankaracharya swami nishchalanand saraswati ji pravachan

गीता, बाइबल और कुरान :- 


बाइबल से गीता का अंश हटा दें तो बाइबल क्या रह जाए, इस पर विचार करें। बाइबल से गीता का अंश हटा दीजिए तो बाइबल क्या रह जाए? कुछ न रह जाए। बुश महोदय ने कहा था कुछ साल पहले जब वो दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति होने वाले थे, उन्हीं के शब्दों में मैं बोल रहा हूँ, उन्होंने अंग्रेज़ी में कहा था, मैं हिंदी में - ' मैं जन्मजात क्रिश्चियन हूँ, बाइबल में मेरी पूर्ण आस्था है परंतु सृष्टि को लेकर जो बाइबल में मान्यता है उस पर विज्ञान ने पानी फेर दिया, उतने अंशों में बाइबल मेरे लिए आस्था का केंद्र नहीं है। ' सृष्टि की आयु जो बाइबल आदि में दी गई है… आजकल का विज्ञान तो 1 अरब से अधिक प्राचीन पृथ्वी को मानता है। 31 नील 10 खरब 40 अरब वर्ष सृष्टि की पूर्ण आयु होती है। 1972949121 वर्ष प्राचीन पृथ्वी है, भगवद्गीता के आठवें अध्याय के आधार पर गणित करने पर और बाइबल के आधार पर पृथ्वी की आयु का अङ्कन  करेंगे तो कितनी सिद्ध होगी? हमने संकेत किया। 


 वहाँ पूर्व जन्म की मान्यता नहीं, पुनर्जन्म की मान्यता नहीं है। वहाँ पर आधुनिक विज्ञान ही विजयी हो जाता है। हम निन्दा नहीं करना चाहते लेकिन विचार करने की आवश्यकता यह है कि बाइबल से भी वे ही लाभ उठा सकते हैं जिनको वेदादि शास्त्रों का विधिवत् ज्ञान है। कितना अंश बाइबल का ग्राह्य है, कितना अंश कुरान शरीफ़ का ग्राह्य है.. कम से कम paradise को / स्वर्ग को तो वे लोग मानते हैं। देह के नाश से जीव का नाश हो जाता तो paradise / स्वर्ग में जीव की गति कैसे होती? या कब्रिस्तान में जीव कैसे बना रहता?  इतना अंश तो उनके यहाँ है। पूर्वजन्म-पुनर्जन्म भले ही ना हो। देहपात से ही जीव का नाश नहीं होता तभी कब्र की पूजा भी सिद्ध होती है। वह जीव वहाँ सन्निहित है तब तो। तो हमने संकेत किया - जितना अंश वेदादि शास्त्रों का बाइबल, कुरान में प्राप्त है… कुरान शरीफ़ की इतनी ही बात मान लें कि ब्याज का धन खाना उचित नहीं है। ब्याज का धन खाना उचित नहीं है इतना तो वो लोग भी मानते हैं ना? बाइबल आदि से भी कितना अंश हमको ग्रहण करना चाहिए? जितने अंशों में वेदादि शास्त्रों की मान्यता, वेदादि शास्त्रसम्मत सिद्धान्त उनमें अनुगत हैं उतने अंशों में ग्रहण करना चाहिए। अतिरिक्त अंश अपना....  समझकर जीवन को उन्नत करना चाहिये।

- पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी

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