सनातन धर्म में गोत्र का महत्व

sanatan dharma me gotra ka mahatva, importance of gotra in sanatan dharma govardhan math puri shankaracharya pravachan, achyuta gotra,
किसी श्रोता का प्रश्न - सनातन धर्म में गोत्र का बहुत महत्व है। इसके बारे में विस्तार से बतायें।

शंकराचार्य जी का उत्तर
- हमारा एक ग्रन्थ है 'सनातनधर्म प्रश्नोत्तर मालिका'। उसमें मत्स्य पुराण आदि के अनुसार विस्तारपूर्वक गोत्र और प्रवर का वर्णन है, वह देखिये। गोत्रप्रवर्तक ऋषि होते हैं। अधिकांश ऋषि ब्राह्मण हुए हैं, कुछ क्षत्रिय, कुछ वैश्य ऋषियों का भी नाम गोत्र प्रवर्तक मनीषियों के रूप में शास्त्र में है। उनके आधार पर सनातन धर्मियों की पहचान होती है। अगर किसी को अपने गोत्र का ज्ञान न हो, गोत्र परम्परा से भूल चुके हों, कश्यप गोत्र उनका माना जाता है। क्योंकि भगवान् कश्यप की परम्परा में सबका जन्म हुआ है। अतः काश्यप उनको कहते हैं। जो सन्त-महात्मा होते हैं परम्परा से उनका भी कोई गोत्र होता है लेकिन श्रीमद्भागवत के चतुर्थ स्कंध के अनुसार अच्युत गोत्र उनका होता है, सीधे भगवान् से ही वे जुड़े होते हैं। भगवत्पाद शङ्कराचार्य महाभाग ने चार पीठों की स्थापना की, उन पीठों के भी गोत्र होते हैं। इस प्रकार से गोत्र का बहुत महत्व है। जिनके आधार पर हमारी पहचान है, जो हमारे पूर्वज हुए...  वंश परम्परा की दृष्टि से भी गोत्र का वर्णन होता है। और कुलगुरु की दृष्टि से भी गोत्र का ज्ञान होता है। जो द्विजाति नहीं है उनके गोत्र का ज्ञान नाद परम्परा की दृष्टि से, गुरु परम्परा की दृष्टि से होता है।

पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी 

About the Author

सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण, स्वस्थ और सर्वहितप्रद व्यक्ति तथा समाज की संरचना हमारा लक्ष्य है।

Post a Comment

Oops!
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again.