प्रश्न - भारत में बढ़ रहे दुष्कर्मों को कैसे रोका जाए?
शंकराचार्य जी का उत्तर - नीति और अध्यात्म से समन्वित शिक्षा पद्धति, सनातन वेदादि शास्त्रसम्मत विधा से जीवनयापन एक मात्र इसका उपाय है। मैं मान्य न्यायालय का सम्मान करता हूँ, शंकराचार्य का पद अपने आप में आध्यात्मिक क्षेत्र में सर्वोच्च न्यायाधीश का होता है लेकिन समलैंगिकता को जब न्यायालय के माध्यम से व्यभिचार नहीं माना जाता… अभी उड़ीसा के उच्च न्यायालय ने एक निर्णय दिया - दो व्यक्तियों में प्रेम हो जाए उसके बाद दुष्कर्म को दुष्कर्म नहीं मानना चाहिए। इस प्रकार मानवोचित शील की धज्जि उड़ा कर जब न्यायालय भी भूमिका प्रस्तुत करता है, साथ ही साथ अश्लील मनोरंजन, मादक द्रव्यों को जीवन का अंग मान लिया गया है तो "कुएं में भांग पड़ी की" कहावत चरितार्थ है। हमारे यहां तो मातृशक्ति के रूप में इनको उद्भासित किया गया है।
ध्यान दीजिए - "देवियों के शील की रक्षा राष्ट्र की रक्षा है।" ऐसी स्थिति में सब कुछ उनके ऊपर निर्भर करता है। मैं बृहदारण्यक उपनिषद् के अनुसार संकेत करता हूँ - प्रवृत्ति मार्ग, निवृत्ति मार्ग, लोक की सार्थकता, परलोक की सार्थकता, परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त हो, ये सब देवियों पर निर्भर करता है तो मातृशक्ति को हमने माता के रूप में रखा। आधुनिक जगत ने उनको भोग की पिटारी के रूप में समझा हैं। इसीलिए ये सब दुष्कर्म होता है, दिशा हीनता होती है। तो नीति और आध्यात्म से समन्वित शिक्षा पद्धति हो और व्यक्ति की संरचना का प्रकल्प सनातन शास्त्रों के आधार पर हो तो इस प्रकार का विस्फोट नहीं हो सकता।
मैं केवल दो उदाहरण देता हूँ:
आर्ष प्रणीत दो इतिहास हमारे हैं: - एक ब्रह्मऋषि वाल्मीकि के द्वारा विरचित रामायण - वाल्मीकि रामायण और दूसरा महाभारत - कृष्ण द्वैपायन भगवान वेदव्यास के द्वारा विरचित; दोनों में एक- एक विश्व युद्ध का वर्णन है। सावधान हो कर सुनिए। अयोनिजा भगवती सीता के शील पर कटाक्ष किया रावण ने, एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दिया न बाती
मैं केवल दो उदाहरण देता हूँ:
आर्ष प्रणीत दो इतिहास हमारे हैं: - एक ब्रह्मऋषि वाल्मीकि के द्वारा विरचित रामायण - वाल्मीकि रामायण और दूसरा महाभारत - कृष्ण द्वैपायन भगवान वेदव्यास के द्वारा विरचित; दोनों में एक- एक विश्व युद्ध का वर्णन है। सावधान हो कर सुनिए। अयोनिजा भगवती सीता के शील पर कटाक्ष किया रावण ने, एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दिया न बाती
उस समय के ऋषि मुनियों ने कहा राम जी क्षमा मत कीजिए। एक देवी के शील पर केवल…. भले ही अपने उद्धार की अंतर्निहित भावना हो, कटाक्ष करने का फल रावण को क्या मिला? वाल्मीकि रामायण ना हो तो तुलसी रामायण पढ़ के देखिए। अयोनिजा यज्ञवेदी से समोद्भूता इन्द्राणी की अवतार द्रौपदी के शील पर घर के देवरों ने कटाक्ष किया, उस समय के ऋषि मुनियों ने क्या आदेश दिया? और पाण्डवों ने दुर्योधन, दुशासन आदि को क्या दण्ड दिया? दो-दो विश्वयुद्ध हमने एक-एक अयोनिजा, स्वेच्छापूर्वक भूमि से प्रकट होने वाली देवियों के शील पर कटाक्ष करने को उद्यत, उनको दण्ड दिया है। इससे बढ़िया भारतीय संस्कृति में क्या उदाहरण हो सकता है? दो - दो विश्वयुद्ध हमने मोल लिया है केवल देवियों के शील पर कटाक्ष करने वालो को दण्डित करने के लिए। इसलिये सनातन विधा से मातृशक्ति को उद्भासित किया जाये तो इस प्रकार का ताण्डव नृत्य नहीं हो सकता है।
Video link- https://youtu.be/HgqebnTPB9U
How to stop the increasing rapes and crimes in India?