स्वस्थ क्रान्ति के सूत्र

swasth kranti ke sutra स्वस्थ क्रान्ति के सूत्र govardhan math puri shankaracharya swami nishchalanand saraswati pravachan

 स्वस्थ क्रान्ति के लिए छः सूत्र हमने दिये -


पहले तीन सूत्र - 
● चयन, 
● प्रशिक्षण, 
● नियोजन। 

स्वस्थ क्रान्ति की उद्भावना के लिये ही जिनका जन्म हुआ है ऐसे व्यक्तियों का चयन। 
उचित प्रशिक्षण और 
मोर्चे पर नियोजन, ये तीन। 

तीन सूत्र और भी दिये गये हैं - 
● नभोमार्ग से एक सूत्र दिया है- सिद्धान्त का परिज्ञान अर्थात् सद्भावपूर्वक सम्वाद के माध्यम से सैद्धान्तिक निष्पत्ति। निष्पत्ति का अर्थ है निर्णय। 
● भूमार्ग से एक सूत्र दिया है - सेवा का प्रकल्प और 
● भूगर्भमार्ग से एक सूत्र दिया है - सेना का प्रकल्प। सेना भी होनी चाहिये। अगर सनातन सिद्धान्त की रक्षा के लिये सेना न हो तो भी काम नहीं चलेगा। 

सद्भावपूर्वक सम्वाद के माध्यम से सैद्धान्तिक निष्पत्ति हो, सेवा का प्रकल्प हो, सनातन मानबिन्दुओं की रक्षा के लिये सेना भी हमारे पास हो तो सब प्रकार से हम समर्थ हो सकते हैं। 
अब हमको करना क्या है?
प्रत्येक व्यक्ति कम से कम सवा घण्टे नित्य भगवान् का भजन करे। भगवद्भजन से देह, इन्द्रिय, प्राण अन्तःकरण में दिव्यशक्ति का सञ्चार हो। यदि भजन का बल नहीं होगा तो हम अपने जीवन को अपने लिये और अन्यों के लिये उपयोगी सिद्ध नहीं कर सकेंगे। साथ ही साथ सनातन सिद्धान्त को दार्शनिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक धरातल पर प्रस्तुत करने की क्षमता भी कुछ महानुभावों में हो। सनातन धर्म से सम्बद्ध जितने सिद्धान्त हैं वे इस रॉकेट, कम्प्यूटर, एटम और मोबाइल के युग में भी न केवल दार्शनिक अपितु वैज्ञानिक और व्यावहारिक धरातल पर भी एकमात्र उत्कृष्ट हैं, सर्वोत्कृष्ट हैं। इस तथ्य को विश्वस्तर पर उद्भासित करने की आवश्यकता है। 

बार-बार मैंने एक संकेत किया है कि बौद्धों ने हमारे भाव को अपने शब्दों में गुम्फित किया - 'तत्वपक्षपातो हि स्वभावो धीयाम्'. बुद्धि का स्वभाव होता है तत्व का, तथ्य का, वस्तुस्थिति का, सत्य का पक्षधर होना। अगर हम दर्शन, विज्ञान और व्यवहार में सामञ्जस्य साधकर बोलते हैं तो व्यक्ति के हृदय में वह भाव पहुँचते ही वह सत्य का पक्षधर हो जाता है। इस तथ्य को क्रियान्वित करें। 
'तत्वपक्षपातो हि स्वभावो धीयाम्'... जीव का, उसकी बुद्धि का स्वभाव होता है तत्व का, तथ्य का पक्षधर होना। दर्शन, विज्ञान और व्यवहार तीनों में सामञ्जस्य साधकर हम कोई भी भाव व्यक्त करेंगे तो विश्व आह्लादपूर्वक उसे स्वीकार कर लेगा, हमने एक संकेत किया। 

साथ ही साथ यह भी आवश्यकता है सनातन परम्पराप्राप्त जो कृषि विज्ञान, जिसको हम भोजन विज्ञान भी कह सकते हैं, भोजन विज्ञान में कृषि आदि का समावेश हो जाता है। भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, उत्सव, त्योहार, रक्षा, सेवा, न्याय और विवाह के जो प्रकल्प हैं सनातन धर्मियों के वे सर्वोत्कृष्ट हैं। इस तथ्य को विश्वस्तर पर उद्भासित करने की आवश्यकता है।
अभी भी हम विश्व में दिग्विजयी हो सकते हैं, विश्वविजयी हो सकते हैं। दर्शन, विज्ञान और व्यवहार में सामञ्जस्य साधने की क्षमता किसी और तन्त्र में है ही नहीं। 

अब हम संकेत करते हैं, आज हिन्दू धर्म पर जो भी बोलते हैं… उन सब का संकलन करना चाहिये। उनकी वाणी में ओजस्विता तो है, ख्याति तो है ही और हम लोगों के सम्पर्क में आ भी रहे हैं। उनको लाने से क्या होगा? उनके विचार में अपने-आप आवश्यकतानुसार शोधन होता जायेगा। हम नये ढंग से तैयार करना चाहेंगे तो सफल नहीं होंगे। 

आपके क्षेत्र में जो प्रभावशाली व्यक्तित्व, जिनके जीवन में लाञ्छित कोई प्रक्रिया न हो, जिनका जीवन स्वस्थ हो, ऐसे व्यक्ति, मेधावी हों, प्रभावशाली हों, उनको जोड़िये। और थोड़े समय में दर्शन, विज्ञान और व्यवहार में सामञ्जस्य साध करके जो हम लोग बोलते हैं, सम्पर्क में लाइये। उनके जीवन में, उनके विचार में जितने शोधन की अपेक्षा है उतना शोधन हो जायेगा, वो उपयोगी हो जायेंगे। और जो व्यक्ति स्वस्थ क्रान्ति की उद्भावना से ही जन्म ले चुके हैं या कुछ जन्म लेने वाले हैं, कुछ सयाने हो गये, कुछ जुड़ रहे हैं… स्वस्थ क्रान्ति होगी ही और भारत विश्व का गुरु होगा ही और भारत विश्व का हृदय होगा ही और हिन्दू धर्म के प्रति विश्व आस्थान्वित होगा ही। भारत हिन्दू राष्ट्र होगा ही। 

और चार क्षत्रिय उद्भासित करें। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण में एक-एक क्षत्रिय चुनें। ऐसे क्षत्रिय चुनें जिनका जन्म ही स्वस्थ क्रान्ति के लिये हुआ हो। जिनका जन्म ही स्वस्थ क्रान्ति को उद्भासित करने के लिये हुआ हो... चार क्षत्रिय हमारे सम्पर्क में ला करके, उन्हें प्रशिक्षण प्राप्त हो जाये थोड़े समय में, वे अपने-अपने क्षेत्र में हर प्रकार से अव्यवस्था को दूर करने का प्रकल्प चलायें।
चार क्षत्रिय हमको भारत से प्राप्त हों - पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, थोड़ा प्रशिक्षण प्राप्त कर लें और अपने-अपने क्षेत्र में भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, उत्सव, त्योहार, रक्षा, सेवा, न्याय, विवाह को लेकर जो प्रकल्प सनातन परम्परा के अनुसार हो उसको क्रियान्वित करना चाहिये।
एक-एक क्षत्रिय एक-एक दिशा में उद्भासित हों और वे अपने क्षेत्र का दायित्व लें। सुव्यवस्थित, सुरक्षित, सम्पन्न, हर प्रकार से सुसंस्कृत अपने क्षेत्र को बनावें… 

पुरी शंकराचार्य जी के प्रवचन का कुछ अंश 


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