प्रश्न - सास और बहू का आपस में कैसा व्यवहार होना चाहिए?
उत्तर - सास का तो यही भाव होना चाहिए कि यह बहू अपनी माँ को छोड़कर हमारे घर आई है और मेरे ही बेटे का अङ्ग है। अतः मेरा कोई व्यवहार ऐसा नहीं होना चाहिए जिसके कारण इसको अपनी माँ याद आये।
बहू का ऐसा भाव होना चाहिए कि मेरा जो सुहाग है उसकी यह जननी है। जो मेरा सर्वस्व है वह इसी वृक्ष का फल है। अतः इनका आदर होना चाहिए, प्रतिष्ठा होनी चाहिये। कष्ट मैं भोगूँ और सुख इनको मिले। यह मेरे साथ चाहे जैसा कड़वा व्यवहार करें, वह मेरे हित के लिए ही है। यह प्रत्यक्ष देखने में आता है कि मेरे बीमार होने पर मेरी सास जितनी सेवा करती है उतनी सेवा दूसरा कोई कर नहीं सकता। वास्तव में मेरे साथ हितैषिता पूर्वक जितना इसका व्यवहार है, वैसा व्यवहार और किसी का दिखता नहीं और सम्भव भी नहीं। इन्होंने मेरे को बहूरानी कहा है और अपना उत्तराधिकार मेरेको ही दिया है, ऐसा अधिकार दूसरा कौन दे सकता है? इनका बदला मैं कई जन्मों में भी नहीं उतार सकती। अतः मेरे द्वारा इनको किञ्चिन्मात्र भी किसी प्रकार का कष्ट न हो। इसी तरह अपने भाई-बहनों से भी जेठ-जेठानी, देवर-देवरानी का आदर ज्यादा करना है। जेठ-जेठानी माता-पिता की तरह और देवर-देवरानी पुत्र-पुत्री की तरह हैं। है यही भाव रखना चाहिए कि इनको सुख कैसे हो! मैं केवल सेवा करने के लिए ही इनके घर में आई हूँ, अतः मेरी छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी क्रिया केवल इनके हित के लिए, सुख-आराम के लिए ही होनी चाहिए। मेरे साथ इनका कैसा व्यवहार है- इस तरफ मुझे खयाल करना ही नहीं है, क्योंकि इनके कड़वे व्यवहार में भी मेरा हित ही है।
🚩 सवामी रामसुखदास जी महाराज 🚩
🚩 पुस्तक - 'गृहस्थ में कैसे रहें' 🚩
🚩 गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित 🚩