हुगली धर्मसभा में हुए पुरी शङ्कराचार्य जी के प्रवचन का कुछ अंश :-
अभी हम दो-चार दिनों के लिये नेपाल गये थे। विचित्र अनुभव हुआ वहाँ जाकर। पता चला कि अब नेपाल के व्यक्ति कहने लगे हैं - "माना कि रोटी-बेटी की दृष्टि से, संस्कृति की दृष्टि से नेपाल भारत के नजदीक था और आज भी है लेकिन हम तो चीन के खेमे के हो चुके हैं, भारत से हमारा लेना-देना नहीं। हम चीन में विलीन हो चुके हैं, चीन हमारा नियामक है।"
तो अब नेपाल कहाँ चला गया? चीन की गोद में।
कब तक वहाँ सनातन सिद्धान्त रहेगा यह भी एक विचार करने की बात है। कब तक देवी-देवता सुरक्षित रहेंगे यह भी विचार करने की आवश्यकता है। आपका ध्यान गया?
रोटी, कपड़ा, मकान ये सब ऐसी ज्वलन्त समस्याएँ आजकल हैं कि कोई धर्म के नाम पर अधिक समय तक सुदामा बनकर कोई आजकल नहीं रह सकता। नेपाल नरेश को मैंने सूचना दी थी कि आप अधिक समय तक राज्य नहीं कर सकते और नेपाल कम्युनिस्टों का राष्ट्र होगा। नेपाल नरेश को समझ में नहीं आया। विश्व में किसी का ध्यान नहीं था कि नेपाल कम्युनिस्टों के खेमे में जायेगा। मैंने सावधान किया था नेपाल को कि हिन्दू राष्ट्र के नाम पर आप समाज को भूखा नहीं रख सकते अधिक समय तक। आजकल सुदामा बनकर कोई अधिक समय तक नहीं रह सकता। इसलिये हमने संकेत किया कि धर्म के नाम पर भी अधिक समय तक कोई व्यक्ति भूखा-प्यासा नहीं रह सकता।
सुनिये, यह बङ्गाल है न। ज्योतिर बसु जी... गरीबों को दो रोटी मिले इसके नाम पर आये न शासन में? दो रोटी के मोहताज गरीब ज्यों के त्यों रह गये और उन्होंने करोड़ों रुपए से खेलना प्रारम्भ कर दिया। गरीबों का आँसू पोंछा क्या?
चीन में भी, विचार करें जहाँ-जहाँ कम्युनिज़्म छाया है गरीबों को दो रोटी सुलभ कराने के नाम पर कम्युनिस्ट आते हैं, गरीब तो दो रोटी के मोहताज ही बने रह जाते हैं लेकिन राजनेता लाखों रुपये से खेलने लगते हैं। जनता फंस जाती है। इसलिये हमने संकेत किया कि धर्म के नाम पर अधिक समय तक कोई सुदामा बनकर आजकल नहीं रह सकता।
इसलिये धर्म-कर्म की धारा बहनी चाहिये लेकिन मठ और मन्दिर सनातन वैदिक आर्य हिन्दुओं के दुर्ग हों। एक मठ, एक मन्दिर की सीमा निर्धारित कीजिये... कम से कम 2 किलोमीटर परिधि में, 10 किलोमीटर में या 50 किलोमीटर में जिसकी जितनी क्षमता हो। वहाँ मठ-मन्दिर के परिकर (पार्षद) होकर चारों ओर मठ-मन्दिर के पार्षद घूमें। और अपने क्षेत्र को सुबुद्ध, सुसंस्कृत, स्वावलम्बी बना दें। तब नास्तिकों की आस्था के केन्द्र भी मठ-मन्दिर बने रहेंगे। अगर मठ-मन्दिरों के माध्यम से शिक्षा, रक्षा, अर्थ, सेवा, शुचिता, स्वच्छता, सुन्दरता, शील और स्नेह से सम्पन्न जीवन का प्रचार-प्रसार नहीं हुआ तो अधिक समय तक मठ-मन्दिर टिक नहीं सकते। मठ-मन्दिर अपनी उपयोगिता सिद्ध करें। साथ ही साथ मैं संकेत करता हूँ - गिने-चुने व्यक्तियों की मनौती मानने और आस्था के केन्द्र बनकर ही अगर मन्दिर रह गये तो भी मन्दिर के प्रति लोगों की आस्था नहीं रहेगी आजकल। अभी मैं पुरी जाऊँगा तो मैं बताऊँगा श्रीजगन्नाथ मन्दिर को लेकर कि मन्दिर को गिने-चुने व्यक्तियों की मनौती मानने और आजीविका के साधन बनाकर ही मत रखिये। शिक्षा, रक्षा, अर्थ और सेवा के प्रकल्प वहाँ से चलाइये तो ये मठ-मन्दिर नास्तिकों की आस्था के भी केन्द्र बनेंगे नहीं तो आस्तिकों की भी आस्था के केन्द्र बनकर अधिक समय तक नहीं रह सकते। इसलिये हर क्षेत्र में एक परिधि निर्धारित कीजिये, उस परिधि में शिक्षा, रक्षा, अर्थ, सेवा, स्वच्छता आदि के प्रकल्प चलें।
Original Video - https://youtu.be/Lpe8v_i7NlU